सरस्वती माँ मुझको वर दो, सारी उन्नतियों की कुंजी, मुझे अंक दो औ’ अक्षर दो।। पायी मानव देह सही है, पर इस घट में नेह नहीं है, हृदय ज्ञान का गेह नहीं है, करो दया चेतनता भर दो।। जीभ लिये जो गूंगापन है, कान लिये जो बहरापन है, आँख लिये जो ...
हम विद्या की ज्योति जगाएँ छोड़ भर्त्सना अंधकार की दीप शिखा बन उसे सजाएँ ।। 1 ।। अंधकार यदि अंधकार है अति प्रकाश हम पर प्रहार है तमपोषित निर्मल नयनों से दिव्य ध्येय के दर्शन पाएँ ।। 2 ।। पर उपदेश दंभ झंझा तज निवातस्थ का दीप गुहा निज अविचल प्रज्ञा दीप सँजोकर ...
आओ देश जगाएँ, नव विहान के अभिनन्दन में वंदन अर्ध्य चढ़ाएँ ।।1।। मुक्त गगन की अरुण विभा पर उदित तिरंगा मुदित दिवाकर खिलें सुमन प्राणों के मधुकर नूतन स्पंदन पाएँ ।।2।। उठो तजें आलस सदियों का रोकें घन बहती नदियों का बिजली औ’ जल की निधियों का वैभव विपुल बिछाएँ ।।3।। ...
आओ देश बनाएँ रचयिता – श्री दयाल चन्द्र सोनी आओ देश बनाएँ उजड़ा बाग लगायें फिर से बिछुड़ा नीड़ बसाएँ ।।1।। डाल डाल में हो हरियाली पात पात पर हो ख़ुशहाली आज चमन के हम ख़द माली कली कली खिल जाये ।।2।। सुस्ती छोड़ उठो सदियों की ठंड दूर हो हिम कणियों की ...
बसंत लेखक -दयाल चन्द्र सोनी वह कहां लुका पावन बसंत, वह कहां उमंग हुलास कहां वे कहां लताएं अलि मंडित वे पत्र पुष खग कहां किस महा शिशिर का यह प्रकोप क्यों भरता ठंडी आह पवन यों तुहिन दग्ध सुनसान म्लान क्यों उजड़ा यह नंदन कानन कब से छाया है यह विषाद क्या तुम्हें होश ...
बसंत लेखक -दयाल चन्द्र सोनी कोई कलि हो तो मुसकाए कोई अलि हो तो बलि जाये लो ऋतु बसंत की आयी कोई कोयल हो तो गाये कोई रूठा हो मन जाये कोई ठंडा हो गरमाए जीवन की लाली छायी कोई दिल हो तो खिल जाये। पतझड़ के क्लेश भुलाए फिर नव परिधान सजाये टेसू की ...
आओ बसंत लेखक -दयाल चन्द्र सोनी आओ बसंत, आओ बसंत हम कबसे तुम्हें बुलाते हैं ये गीत तुम्हारे गाते हैं क्यों आनाकानी करते हो मानो मुस्काओ तो बसंत आओ बसंत आओ बसंत। हम घोर शिशिर में कॉंप चुके हम पत्र पुराने झाड़ चुके नंगे भिखमंगे ठूंठ बने हम खड़े तुम्हारे दर बसंत आओ बसंत आओ ...