जाण अमरता जीव जी, मरण देह रो जाण। मत कर निज कर्तव्य री, देह मोह वश हाण।।1।। है संपूरण सृष्टि में, व्याप्त राम भगवान। जिण सूँ कुदरत में नियम, अर घट में ईमान।।2।। है कुदरत रा नियम में, क्षरण-भरण रो संग। अर मर्यादाग्रस्त है, कुदरत रो हर अंग।।3।। मर्यादा सूँ ग्रस्त यो, क्षरण-भरण रो कर्म। ...