धर्म और विज्ञान: कैसे पटेगी बीच की खाई

मानवेन्‍द्रनाथ राय का लेख पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि वे विज्ञान एवं धर्म के बीच एक पारस्‍परिक विरोध की दृष्टि रखते हैं। वे मानते हैं कि समय के साथ विज्ञान की जो वास्‍तविकता है इससे धर्मगत काल्‍पनिकताऍं हारती जारही हैं, पर मेरा मत संयोगवश काफी भिन्‍न है। मैं धर्म एवं विज्ञान के बीच ...

क्या है मैकालेवादी शिक्षा का परोक्ष पक्ष

नि:श्रम विशिष्‍ट वर्गीय समाज एवं निरक्षर सामान्‍य श्रमिक समाज में देश का विभाजन- जीवन निर्वाह के लिये उपयोगी उत्‍पादक देह श्रम से परहेज रखने की, देशी वेशभूषा एवं भाषा से परहेज करने की, सादा जीवन बिताने की बजाय शान शौकत से जीने की, जमीन पर बैठने की बजाय कुर्सियों पर बैठने की जो परोक्ष शिक्षा ...

शिक्षा फैलती गई, और देश का नैतिक स्तर गिरता गया

जिस प्रकार केवल वही पानी पानी नहीं है जो सरकार के नल जल विभाग से शहरी जनता के घरों में वितरित किया जाता है और कुओं में, नदियों में और तालाबों में या जंगल के किसी जल स्रोत में पाया जाने वाला पानी भी पानी ही होता है, उसी प्रकार वही शिक्षा, शिक्षा नहीं होती ...

शिक्षक को पालतू बनाने के लिये प्रशिक्षण आवश्यक है

जब राज्‍यों में मुख्‍यमंत्री, मंत्री या जिम्‍मेदारी के अन्‍य बड़े बड़े संवैधानिक पदों पर अप्रशिक्षित एवं अनभ्‍यस्‍त लोगों को लगाया जा सकता है तो मैं सोचता हूँ कि एक शिक्षित व्‍यक्ति को शिक्षक पद पर नियुक्ति हमारी सरकार तब तक क्‍यों नहीं देती जब तक वह प्रशिक्षित होने का प्रमाण पत्र पेश नहीं करता? कॉलेजों ...

प्रौढ़ शिक्षा के नये क्षितिज

बदलती प्रौढ शिक्षा की अवधारणा सर्व प्रथम मुझे यह कहना है कि इस देश एवं इस शताब्‍दी में ‘प्रौढ़ शिक्षा’ का जो विचार पैदा हुआ और पनपा उसके मूल में मान्‍यता यह थी और यह लगातार बनी रही कि जो लोग किसी भी कारण से अपने बाल्‍यकाल में स्‍कूली शिक्षा से वंचित रह गए हैं, ...

शिक्षा को परखने की कसौटी

शिक्षा का मूल दायित्‍व किसी भी समाज या किसी भी काल में क्‍या है। क्‍या शिक्षा को केवल इतना ही करना है कि जैसा भी समाज हो और जैसा भी जमाना हो, उस समाज एवं उस जमाने में सुविधा एवं कुशलता पूर्वक अपने आपको मोड़ने एवं जमाने में शिक्षालय से निकलने वाले छात्र को तैयार ...

खरी शिक्षा के अभाव में पनपाया प्रशासनिक तंत्रजाल

राज्‍यदंड या शासन एवं कानून की व्‍यवस्‍था मूलत: एक अवांछनीय व्‍यवस्‍था है, यह एक बुराई है, पर मजबूरी यह है कि एक अवांछनीय व्‍यवस्‍था तथा बुराई होते हुए भी मनुष्‍य जाति की जो वास्‍तविक दशा है उसमें यह आवश्‍यक है। इससे पूर्णतया बचने के जैसा युग अभी तक आया नहीं है। एक कल्‍पना रामराज की ...

क्या वर्तमान स्कूल को सार्वजनीन शिक्षालय मानना उचित है?

वर्तमान समय की सबसे ख़तरनाक ग़लती यह है कि हमने स्‍कूल (नामक पाठशाला) मात्र को मनुष्‍य का शिक्षालय मानना शुरू कर दिया है। मुझे लगता है कि हम पर एक अंधी धुन सवार हो गयी है कि ‘सबको साक्षर एवं स्‍कूलित करो वरना भारत का बेड़ा गर्क हो जायगा।’ मुझे बहुत हैरानी होती है जब ...

यदि स्कूलों ने परिश्रम को अपनाया होता

सन् 1941-42 में मैने जामिया मिलिया इस्‍लामिया, दिल्‍ली के ”उस्‍तादों के मदरसे” में एक वर्ष का गांधीवादी बुनियादी शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्‍त किया। इस प्रशिक्षण में सौभाग्‍य हमारा यह रहा कि स्‍वयं डॉ. जाकिर हुसैन ने दस दिनों तक हमारी कक्षा में एक-एक घंटा भाषण दिया (या हमें पढ़ाया) इस दौरान विद्यार्थियों (छात्र शिक्षकों) ने ...

ऐसी स्कूल संस्था का यह अंधा प्रचार और प्रसार रुकना चाहिए

आज हमारे पूरे समाज में इस प्रश्‍न पर बहुत गम्‍भीरता से विचार होने की आवश्‍यकता है कि क्‍या स्‍कूल ही शिक्षा का एक मात्र प्राप्ति स्‍थान है, या शिक्षा पर क्‍या स्‍कूल की ही मॉनोपोली या ठेकेदारी है, या स्‍कूल में जो कुछ हमारी नयी पीढ़ी को दिया या परोसा जा रहा है क्‍या वही ...

प्रशिक्षण बाहर से मिलाने का नहीं, भीतर से खिलाने का काम है

”शिक्षण” के विषय में तो मैं यह मानता हूँ कि यह इस मानव जीवन में ठेठ से ही था, परन्‍तु, मुझे जहॉं तक जानकारी है शिक्षण में ”प्रशिक्षण” का जन्‍म इस नये युग में ही हुआ है। उदाहरण के लिए मैं जाति से स्‍वर्णकार हूँ। मेरे पिता एक बहुत उच्‍च कोटि के गारीगर स्‍वर्णकार थे। ...

केवल स्कूल ही शिक्षा देने का माध्यम नहीं

आज इस प्रश्‍न पर विचार करना अति आवश्‍यक हो गया है कि क्‍या शिक्षा का प्रप्ति स्‍थान केवल स्‍कूल ही है। यह प्रश्‍न अत्‍यंत महत्‍व का इसलिए हो गया है कि पूरे देश में हमारे तथा कथित शिक्षितों एवं तथाकथित अशिक्षितों में यह मान्‍यता जड़ जमा कर बैठ गयी है कि शिक्षा का प्राप्ति स्‍थान ...

अनवरत और अनौपचारिक शिक्षा के लिए अध्यापकों का पुन:संजीवनीकरण

पहले एक चेतावनी दे दूँ कि पुन: संजीवनीकरण में खतरा भी है। यदि पुन:संजीवनीयुक्‍त अध्‍यापक सचमुच उत्‍पादित भी हुए तो वे वर्तमान सामाजिक-व्‍यवस्‍था और शिक्षा के ढाँचे में, अनुकूल और उपयुक्‍त स्‍थान न पाने के कारण, अपने आप को पूरी तरह अलग-थलग, कटा हुआ-सा पाएँगे क्‍योंकि सजीव शिक्षण और अधिगम के विचार आधुनिक और तथाकथित ...