सरस्वती माँ मुझको वर दो, सारी उन्नतियों की कुंजी, मुझे अंक दो औ’ अक्षर दो।। पायी मानव देह सही है, पर इस घट में नेह नहीं है, हृदय ज्ञान का गेह नहीं है, करो दया चेतनता भर दो।। जीभ लिये जो गूंगापन है, कान लिये जो बहरापन है, आँख लिये जो ...
जनतंत्र यो न्हीं हे के जनता शासकाँ ने चुन सके। वास्तविक जनतंत्र यो हे के जनता शिक्षकाँ ने चुन सके। (मेवाड़ी) – दयाल चंद्र सोनी, शिक्षांजलि 1992 "Jantantra yo nee hai ke janta shashakaan nai chun sakay. Vastavik Jantantra to woh hai ke janta shikshikan nai chun sakay." जनतंत्र यह नहीं है कि जनता शासकों ...
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५० – ७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतेन्दु हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम हरिश्चन्द्र था, भारतेन्दु उनकी उपाधि थी। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध ...
सामान्यत: प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ श्री रामचरितमानस के लंकाकांड को असुरों के साथ संग्राम और अंत में रावण वध की कथा से संबंधित माना जाता है और सुंदरकांड की तरह इसका बारंबार पाठ नहीं किया जाता लेकिन इसमें उच्च जीवन मूल्यों को प्रेरित करने वाला एक प्रभावी अंश है जो नीचे हिंदी भावार्थ के साथ प्रस्तुत ...