दादा की दूसरी पुण्य तिथि दिनांक 15.3.2010 को थी। इस अवसर पर कार्यक्रम व्यावहारिक कारणों से दिनांक 16.3.2010 को आयोजित किया गया। जिसके अंर्तगत विद्याभवन बेसिक स्कूल के प्रांगण में गत वर्ष लगाए गए पौधों की सार संभाल की गई और 51 पौधे नए लगाए गए। कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री जगत ...
जाण अमरता जीव जी, मरण देह रो जाण। मत कर निज कर्तव्य री, देह मोह वश हाण।।1।। है संपूरण सृष्टि में, व्याप्त राम भगवान। जिण सूँ कुदरत में नियम, अर घट में ईमान।।2।। है कुदरत रा नियम में, क्षरण-भरण रो संग। अर मर्यादाग्रस्त है, कुदरत रो हर अंग।।3।। मर्यादा सूँ ग्रस्त यो, क्षरण-भरण रो कर्म। ...
(Abstract of a paper written in Hindi by Shri Dayal chandra Soni – published in Naya Shikshak/Teacher today July-September, 1977) Not that the teachers’ participation and their acquiring due representation in the school administration is undesirable; it is liable to some serious flaws arising mainly from selfishness and malice. In privately managed educational institutions this ...
नया शिक्षक/टीचर टुडे जुलाई-सितम्बर 1977 में प्रकाशित श्री दयाल चंद्र सोनी का लेख स्वैच्छिक शिक्षण संस्थाओं के प्रबन्ध में उन संस्थाओं के कार्यकर्ताओं का समुचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए ऐसी मांग प्राय: उठा करती है और यह मांग निर्विवाद रूप से उचित है। परन्तु इस मांग के मान लिये जाने से शिक्षकों की परिस्थिति में ...
बुनियादी तालीम, अप्रेल 1961 में प्रकाशित श्री दयाल चंद्र सोनी का लेख शिक्षक की समस्या सर्व विदित है कि बुनियादी शिक्षा का मौलिक तत्व समवाय है और विद्यार्थी के हस्तोद्योग तथा सामाजिक और भौतिक जीवन के द्वारा जो शिक्षा दी जाती है उसे समवाय शिक्षा कहा गया है। परन्तु एक शिक्षक को जब कुछ ...
Dayal Chandra Soni The British Raj came to an end in 1947. All of us know very well that Macaulay, the well-wisher and promoter of British imperialism in India, had changed the traditional system of Indian Education and had established the present system of our education to promote the interests of the British Raj ...
by Dayal Chandra Soni Translated by Dayal Chandra Soni and Vidhi Jain from author’s original work named "Muuh Anbhaniyo Shikshit Hoon" in Mewari (a local dialect of Southern Rajasthan, India). Vidhi Jain is associated with a N.G.O. "Shikshantar" based at Udaipur, Rajasthan, India. Shri Dayal Chandra Soni was called to deliver a lecture to the ...
एक कहावत है कि बैलगाड़ी जब चलती है तो उसके नीचे-नीचे उसकी छाया में एक कुत्ता भी कभी-कभी चलता है। पर इस तरह गाड़ी के नीचे चलते हुए कुत्ते को यह भ्रम हो जाये कि गाड़ी उसके बल पर या उसके चलाने से चल रही है तो यह बिल्कुल गलत होगा। स्कूल अपनी जगह ठीक ...
मानवेन्द्रनाथ राय का लेख पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि वे विज्ञान एवं धर्म के बीच एक पारस्परिक विरोध की दृष्टि रखते हैं। वे मानते हैं कि समय के साथ विज्ञान की जो वास्तविकता है इससे धर्मगत काल्पनिकताऍं हारती जारही हैं, पर मेरा मत संयोगवश काफी भिन्न है। मैं धर्म एवं विज्ञान के बीच ...
नि:श्रम विशिष्ट वर्गीय समाज एवं निरक्षर सामान्य श्रमिक समाज में देश का विभाजन- जीवन निर्वाह के लिये उपयोगी उत्पादक देह श्रम से परहेज रखने की, देशी वेशभूषा एवं भाषा से परहेज करने की, सादा जीवन बिताने की बजाय शान शौकत से जीने की, जमीन पर बैठने की बजाय कुर्सियों पर बैठने की जो परोक्ष शिक्षा ...
जिस प्रकार केवल वही पानी पानी नहीं है जो सरकार के नल जल विभाग से शहरी जनता के घरों में वितरित किया जाता है और कुओं में, नदियों में और तालाबों में या जंगल के किसी जल स्रोत में पाया जाने वाला पानी भी पानी ही होता है, उसी प्रकार वही शिक्षा, शिक्षा नहीं होती ...
जब राज्यों में मुख्यमंत्री, मंत्री या जिम्मेदारी के अन्य बड़े बड़े संवैधानिक पदों पर अप्रशिक्षित एवं अनभ्यस्त लोगों को लगाया जा सकता है तो मैं सोचता हूँ कि एक शिक्षित व्यक्ति को शिक्षक पद पर नियुक्ति हमारी सरकार तब तक क्यों नहीं देती जब तक वह प्रशिक्षित होने का प्रमाण पत्र पेश नहीं करता? कॉलेजों ...
बदलती प्रौढ शिक्षा की अवधारणा सर्व प्रथम मुझे यह कहना है कि इस देश एवं इस शताब्दी में ‘प्रौढ़ शिक्षा’ का जो विचार पैदा हुआ और पनपा उसके मूल में मान्यता यह थी और यह लगातार बनी रही कि जो लोग किसी भी कारण से अपने बाल्यकाल में स्कूली शिक्षा से वंचित रह गए हैं, ...
शिक्षा का मूल दायित्व किसी भी समाज या किसी भी काल में क्या है। क्या शिक्षा को केवल इतना ही करना है कि जैसा भी समाज हो और जैसा भी जमाना हो, उस समाज एवं उस जमाने में सुविधा एवं कुशलता पूर्वक अपने आपको मोड़ने एवं जमाने में शिक्षालय से निकलने वाले छात्र को तैयार ...
राज्यदंड या शासन एवं कानून की व्यवस्था मूलत: एक अवांछनीय व्यवस्था है, यह एक बुराई है, पर मजबूरी यह है कि एक अवांछनीय व्यवस्था तथा बुराई होते हुए भी मनुष्य जाति की जो वास्तविक दशा है उसमें यह आवश्यक है। इससे पूर्णतया बचने के जैसा युग अभी तक आया नहीं है। एक कल्पना रामराज की ...