दादा (स्वर्गीय श्री दयाल चन्द्र सोनी) ने समय समय पर कुछ शेर लिखे थे उनमें से कुछ यहॉं प्रस्तुत हैं –
(1)
मेरी नज़र से आपको परहेज़ है अगर
मेरे ज़हन में आके आप सोचते हैं क्यों।
18-01-1957
(2)
क़ातिल ने शास्त्र पढ़ कर बकरे से यूं कहा
होने हलाल से तो बेहतर है ख़ुदकुशी।
अक्टूबर 1956
(3)
उनके मकां की ख़ातिर चलना नहीं पड़ा
उनके मकां से चलकर दूरी नहीं हुई।
27-04-1957
(4)
शैतान मेरा पीछा अब तक न छोड़ता है।
पीछे अभी ख़ुदा के मैं भी पड़ा हुआ हूँ।
15-05-1957
(5)
उनके मकां का नक्शा तो याद है बख़ूबी
अफसोस है कि उनका हुलिया बिसर गया है।
(6)
जहन्नुम का घूंघट जो मैंने उठाया
तो पाया कि जन्नत का गुल खिल रहा है।
(7)
यह आपकी नसीहत बेशक मुफ़ीद होगी
पर उसको दीजिए जो बस में न आपके हो।
26-11-1957