जाण अमरता जीव जी, मरण देह रो जाण।
मत कर निज कर्तव्य री, देह मोह वश हाण।।1।।
है संपूरण सृष्टि में, व्याप्त राम भगवान।
जिण सूँ कुदरत में नियम, अर घट में ईमान।।2।।
है कुदरत रा नियम में, क्षरण-भरण रो संग।
अर मर्यादाग्रस्त है, कुदरत रो हर अंग।।3।।
मर्यादा सूँ ग्रस्त यो, क्षरण-भरण रो कर्म।
कर्म रूप में यज्ञ है, यज्ञ रूप में धर्म।।4।।
कुदरत सूँ थूँ सीख यो, मूल धर्म अर यज्ञ।
निज ऋण भार उतार थूँ, उण रो होय कृतज्ञ।।5।।
निजी यज्ञ थारो उही, जो थारो निज कर्म।
अर समाज-सेवार्थ है, व्हो ही थारो धर्म।।6।।
असा यज्ञ अर धर्म रो, पण है टेढ़ो काम।
विषय-तृषा मन री अगर, दौड़े बिना लगाम।।7।।
विषय-तृषित मन आपणो, सहज न जीत्यो जाय।
राम नाम रो जाप है, पण इण रो सदुपाय।।8।।
भौतिक सुख री भूख में, डोल न थूँ दिनरैन।
शान्त चित्त सूँ प्राप्त कर, आत्मतुष्टि सुख चैन।।9।।
देख सबां एक ही, राम रूप विस्तार।
कर दूजा रे साथ थूँ, आत्मोपम व्यवहार।।10।।
स्थिर विवेक सूँ खोल थूँ, निज हिरदा री आँख।
दूजा ज्यूँ निज चरित पर, खुद निगराणी राख।।11।।
कर थूँ खुद रा जनम सूँ, खुद रो चरित पवित्र।
जग में थूँ ही शत्रु निज, थूँ ही निज रो मित्र।।12।।
कर्म छोडियाँ नी निभे, कीधाँ उपजे भार।
इण उलझन सूँ मुक्ति रो, कर्मयोग उपचार।।13।।
साध भक्ति निज कर्म में, अर फल में सन्यास।
यूँ थारो व्हेगा सफल, कर्मयोग अभ्यास।।14।।
निज कर्तव्य न टाल थूँ, फल संशय रे माँय।
थारे वश बस कर्म है, फल थारे वश नाय।।15।।
कर्मयोग में जीविका, रा सब कर्म समान।
तो थूँ कर्मां रे वचे, ऊँच नीच मत मान।।16।।
व्हे चाकर इमान रो, बिलकुल निरहंकार।
यूँ थारो मिट जायगा, निज कर्मां रो भार।।17।।
भार मुक्त निज हृदय में, खुले राम रो द्वार।
और राम री शरण में, है थारो उद्धार।।18।।
।।नेति।।
रचयिता – दयाल चन्द्र सोनी, 26 विद्या मार्ग, देवाली, उदयपुर (राज.)
रचनाकाल – सन् 1979 सूँ 2006 तक।। प्रेरणादाता – स्व. शंभूदादा शर्मा (कांकरोली वाला)
टिप्पणी –
अणी ‘विनती गीता’ में ‘राम’ शब्द रो प्रयोग रामायण रा दशरथ पुत्र राम रा सीमित अर्थ में नीं व्हियो है, बल्कि संपूर्ण सृष्टि में रमवा वालो यानी लीला करवा वालो जो परब्रह्म परमेश्वर है, जणी ने मुसलमान तो ‘अल्लाह’ और अंग्रेज़ ‘गॉड’ केह्वे है और जणी ‘राम’ शब्द रो प्रयोग ‘धर्म-ईमान’ रा अर्थ में भी व्हेवे है, व्हणी व्यापक अर्थ में हीज अठे राम शब्द रो प्रयोग व्हियो है। अणी रे अलावा, गीता रो उपदेश देवा वाला ज्यी वासुदेव भगवान कृष्ण हा, व्ही भी राम रा हीज एक नवा अवतार हा और व्हणा भी खुद ने परब्रह्म परमेश्वर हीज वतायो हो।।