सरस्वती माँ मुझको वर दो,
सारी उन्नतियों की कुंजी,
मुझे अंक दो औ’ अक्षर दो।।
पायी मानव देह सही है,
पर इस घट में नेह नहीं है,
हृदय ज्ञान का गेह नहीं है,
करो दया चेतनता भर दो।।
जीभ लिये जो गूंगापन है,
कान लिये जो बहरापन है,
आँख लिये जो अंधापन है,
शरणागत हूँ, उसको हर दो।।
आया आज समय जनता का,
खुला द्वार है अब समता का,
दीपक दो मुझको विद्या का,
मेरा अन्तर उज्ज्वल कर दो।।
संयम का निर्वाह सिखा दो,
आत्मा का परवाह सिखा दो,
सत्यामृत की राह दिखा दो,
हिय की वीणा झंकृत कर दो।।
दो उत्तम गुरू शिष्य समागम,
कर्म और विद्या का संगम,
ज्ञान दुग्धहित, वत्सधेनुसम,
मुझे प्रश्न दो औ’, उत्तर दो।।
– दयाल चन्द्र सोनी