हम विद्या की ज्‍योति जगाएँ

हम विद्या की ज्‍योति जगाएँ

छोड़ भर्त्‍सना अंधकार की

दीप शिखा बन उसे सजाएँ   ।। 1 ।।

अंधकार यदि अंधकार है

अति प्रकाश हम पर प्रहार है

तमपोषित निर्मल नयनों से

दिव्‍य ध्‍येय के दर्शन पाएँ   ।। 2 ।।

पर उपदेश दंभ झंझा तज

निवातस्‍थ का दीप गुहा निज

अविचल प्रज्ञा दीप सँजोकर

स्निग्‍ध प्रकाश सहज फैलाएँ   ।। 3 ।।

ज्ञान वृद्धि हो सुख समृद्धि हो

विविध कलामय ऋद्धि सिद्धि हो

पर विकास में व्‍यस्त हमारा

हृदय द्रवणगुण भूल न जाएँ   ।। 4 ।।

दिशा दिशा के उर के झरने

मिलें हमारा सरवर भरने

वरद शारदा के चरणों में

हम सहस्रदल कमल खिलाएँ   ।। 5 ।।

 

प्रतिपल अपना स्‍नेह जला कर

प्रतिपल अपनी देह गला कर

अंधकार का गरल निगलकर

हम सत् सुंदर शिव बन जाएँ   ।। 6 ।।

                                            

                                       रचयिता – श्री दयाल चन्‍द्र सोनी