आओ देश जगाएँ,
नव विहान के अभिनन्दन में वंदन अर्ध्य चढ़ाएँ ।।1।।
मुक्त गगन की अरुण विभा पर
उदित तिरंगा मुदित दिवाकर
खिलें सुमन प्राणों के मधुकर
नूतन स्पंदन पाएँ ।।2।।
उठो तजें आलस सदियों का
रोकें घन बहती नदियों का
बिजली औ’ जल की निधियों का
वैभव विपुल बिछाएँ ।।3।।
नये सृजन के नक्शे खींचो
धरती खोद पसीना सींचो
बदले में धन धन्य उलीचो
कंगाली मिट जाए ।।4।।
धंधे में ईमान निभाओ
स्पर्धा तज सहयोग बढ़ाओ
जड़ता तज विद्या फैलाओ
मानवता खिल जाए ।।5।।
क्षुद्र स्वार्थ की धूल हटा कर
विमल प्रेम की अचल शिला पर
सत्यं शिवं सुंदरं मिल कर
सुदृढ़ राष्ट्र बनाएँ ।।6।।
रचयिता – श्री दयाल चन्द्र सोनी (26-11-1960)