जागो हंस हमारे
अभिनन्दन जीवन विहान का प्रस्तुत द्वार तुम्हारे ।।1।।
विमल बाल मन मानस मंजुल
सरल भावमुक्ता फल उज्ज्वल,
शरदेय वीणा स्वर मंगल
उत्सुक तुम्हें पुकारे
जागो हंस हमारे ।।2।।
नीरक्षीर मय जगजीवन में,
सिकता मुक्तामय आंगन में,
हे विवेकमय हृदय गगन में
उठो, दरस दो प्यारे
जागो हंस हमारे ।।3।।
रचयिता – श्री दयाल चन्द्र सोनी (15 दिसम्बर, 1957)