बसंत – 2

बसंत

लेखक -दयाल चन्द्र सोनी

कोई कलि हो तो मुसकाए

कोई अलि हो तो बलि जाये

लो ऋतु बसंत की आयी

कोई कोयल हो तो गाये

कोई रूठा हो मन जाये

कोई ठंडा हो गरमाए

जीवन की लाली छायी

कोई दिल हो तो खिल जाये।

पतझड़ के क्‍लेश भुलाए

फिर नव परिधान सजाये

टेसू की डाली डाली

होली का खेल रचाये।

बिछड़े खग फिर मिल जायें

गाये नव नीड़ बनाये

यदि आम्र वृक्ष हो कोई

तो अवसर है बोराए

कोई हो चूक न जाये

बीता क्षण हाथ न आये

यह उपवन वैभवशाली

कण कण से शोभा पाये।