कुछ शेर – 2

दादा (स्वर्गीय श्री दयाल चन्द्र सोनी) के कुछ और शेर प्रस्तुत हैं –

 

(8)

कोई मुरादे हरकत पानी में है न अपनी

धरती का ढाल ख़ुद ही सागर को जा रहा है।

22-12-1957

(9)

सूरज की रोशनी से रोशन है गर ज़मीं यह

तो है ज़मी से रोशन सूरज की रोशनी भी।।

31-03-1958

(10)

मसरूफियत से कुछ भी जब काम बन न पाया

बेकार हो गया हूं और काम बन रहा है।

29-04-1957

(11)

रख याद ऐ सिपाही मैदाने जिंदगी में

जितनी लड़ाइयां हैं अपने से जीतनी हैं

(12)

खुले मुंह रहे पर नज़र भी न हाये

जो घूंघट से झांका तो छुप ना सके तुम।

21-08-1958

(13)

इस क़दर नज़रों से ओझल हो गये क्‍यों ऐ ख़ुदा।

जो नुमाया तुमसे ज्‍यादा आजकल शैतान है।

24-08-1958

(14)

जब से हुई है हम में आपस में दुश्‍मनी यह

शागिर्द बन रहे हैं हम एक दूसरे के।

05-11-1958