आओ बसंत
लेखक -दयाल चन्द्र सोनी
आओ बसंत, आओ बसंत
हम कबसे तुम्हें बुलाते हैं
ये गीत तुम्हारे गाते हैं
क्यों आनाकानी करते हो
मानो मुस्काओ तो बसंत
आओ बसंत आओ बसंत।
हम घोर शिशिर में कॉंप चुके
हम पत्र पुराने झाड़ चुके
नंगे भिखमंगे ठूंठ बने
हम खड़े तुम्हारे दर बसंत
आओ बसंत आओ बसंत।
इन भौंरो से इन फूलों से
पिक के इन मीठे बोलों से
अब नहीं ठगे जायेंगे हम
इन रागों रंगों से बसंत
खुद तुमको आना है बसंत
हम दीवानों की टोली हैं
जल चुकी हमारी होली है
अब जले चिता परवाह नहीं
हम तुमको लायेंगे बसंत।
आओ बसंत आओ बसंत।