बचपन का वह संग हमारा

अपनी मातृ संस्था, विद्याभवन, उदयपुर के पूर्व छात्रों (Old Boys) ने सन् 1934 में अपनी एक संस्था (Old Boys Association) बनाने का संकल्प लिया जिसके माध्यम से वे आपस में और संस्था से जुड़े रह कर एक दूसरे के काम आ सकें तो इसका नाम स्वर्गीय श्री दयाल चंद्र सोनी ने ‘विद्याभवन विद्याबंधु संघ’ सुझाया जो ऐसे संघों के सामान्यत: रखे जाने वाले नामों से हट कर थोड़ा अलग है। इस नाम में ‘विद्याबंधु’ शब्द का अभिनव प्रयोग विद्यार्थियों के आपसी बंधुत्व की भावना की आवश्यकता को ऐसी संस्था के मुख्य उद्देश्य के रूप में प्रतिपादित करता है।इस संस्था का विधान बनाने में भी इनका सक्रिय योगदान रहा था। ‘ऋषि ऋण’ की परिकल्पना इनकी थी जिसका उद्देश्य अपनी अपनी इच्छा, शक्ति और रुचि का अनुसार मातृ संस्था व समाज की तन मन धन से सेवा करना था। जब इस संस्था का सहगीत लिखने की बारी आई तो इसे भी स्वर्गीय श्री दयाल चंद्र सोनी ने बखूबी निभाया व सन् 1947 में ‘बचपन का वह संग हमारा’ सहगीत लिखा जो आज भी इस संस्था के सदस्यों का प्रिय गीत है और हर मौके पर गाया जाता है। यह गीत उन्हीं की हस्तलिपि में नीचे प्रस्तुत है –