राज्यदंड या शासन एवं कानून की व्यवस्था मूलत: एक अवांछनीय व्यवस्था है, यह एक बुराई है, पर मजबूरी यह है कि एक अवांछनीय व्यवस्था तथा एक बुराई होते हुए भी मनुष्य जाति की जो वास्तविक दशा है उसमें यह आवश्यक है। इससे पूर्णतया बचने के जैसा युग अभी तक आया नहीं है। एक कल्पना रामराज ...
श्री दयाल चंद्र सोनी ने गीता के सार को संक्षेप में मेवाड़ी में लिखने का अथक प्रयास वर्षों तक किया और इसे विनती गीता का नाम दिया। उनकी हस्तलिखित इस विनती गीता को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है –
आज 10 वर्ष के बजाय 35 वर्ष हमारी आजादी को बीत गये हैं (लेख 1982 में लिखा गया था) पर संविधान की यह धारणा पूरी नहीं हो पाई कि देश के तमाम बच्चों की शिक्षा 14 वर्ष की आयु तक राज्य द्वारा की जा सके। फिर भी, आजादी के बाद शिक्षा का प्रचार तथा प्रसार ...
सरस्वती माँ मुझको वर दो, सारी उन्नतियों की कुंजी, मुझे अंक दो औ’ अक्षर दो।। पायी मानव देह सही है, पर इस घट में नेह नहीं है, हृदय ज्ञान का गेह नहीं है, करो दया चेतनता भर दो।। जीभ लिये जो गूंगापन है, कान लिये जो बहरापन है, आँख लिये जो ...
हम लोग अब तक प्रौढ़ शिक्षा को इस निगाह से देखते रहे हैं कि जो लोग बचपन में स्कूलों में पढ़ाई के दौर से गुजरे बिना ही प्रौढ़ हो गये हैं वे लोग ”शिक्षा से वंचित” रह गये हैं और उन बेचारों पर दया करके हमें चाहिए कि हम उनके लिए रात्रि-शालाएँ चलाएँ और ”देर ...
– दयाल चंद्र सोनी शिक्षा का काम केवल तरकीब या पद्धति तक सीमित नहीं है। सच्ची शिक्षा के पीछे कुछ मान्यता, श्रद्धा, विश्वास, उद्देश्य, आदर्श अथवा दर्शन भी अवश्य रहता है। शिक्षा केवल इसी में ही सीमित नहीं है कि ज्ञान-विज्ञान का प्राचीन संचय नई पीढ़ी को हस्तांतरित कर दिया जाए। शिक्षा विकास की ...
जनतंत्र यो न्हीं हे के जनता शासकाँ ने चुन सके। वास्तविक जनतंत्र यो हे के जनता शिक्षकाँ ने चुन सके। (मेवाड़ी) – दयाल चंद्र सोनी, शिक्षांजलि 1992 "Jantantra yo nee hai ke janta shashakaan nai chun sakay. Vastavik Jantantra to woh hai ke janta shikshikan nai chun sakay." जनतंत्र यह नहीं है कि जनता शासकों ...
(हिंदी व्याख्या – 1) दवाई, मिठाई, नदी, पहाड़ी, गली, घड़ी, हाज़िरी, जैसी “ई” से समाप्त होने वाली संज्ञाओं के बहुवचन में “ई” के बजाय “इ” काम में ली जानी चाहिये जो ऐसी संज्ञाओं को एक वचन और बहुवचन में बोलते समय तो स्वतः ही हो जाता है पर लिखते समय अक्सर भूल हो जाती है ...
हम विद्या की ज्योति जगाएँ छोड़ भर्त्सना अंधकार की दीप शिखा बन उसे सजाएँ ।। 1 ।। अंधकार यदि अंधकार है अति प्रकाश हम पर प्रहार है तमपोषित निर्मल नयनों से दिव्य ध्येय के दर्शन पाएँ ।। 2 ।। पर उपदेश दंभ झंझा तज निवातस्थ का दीप गुहा निज अविचल प्रज्ञा दीप सँजोकर ...
आओ देश जगाएँ, नव विहान के अभिनन्दन में वंदन अर्ध्य चढ़ाएँ ।।1।। मुक्त गगन की अरुण विभा पर उदित तिरंगा मुदित दिवाकर खिलें सुमन प्राणों के मधुकर नूतन स्पंदन पाएँ ।।2।। उठो तजें आलस सदियों का रोकें घन बहती नदियों का बिजली औ’ जल की निधियों का वैभव विपुल बिछाएँ ।।3।। ...
प्रौढ़ शिक्षा में आज एड़ी से चोटी तक एक महा विडम्बना भरी हुई है और यह महा विडम्बना इसमें से जब तक निकाली नहीं जायगी, न तो प्रौढ़ शिक्षा व्यावहारिक बनेगी और न यह राष्ट्र की जनता के हित में होगी। पश्चिम से, और खास कर साम्यवादी-समाजवादी विचारधारा से, एक असर हमारे देश में ...
नैतिक शिक्षा पर बात करने से पूर्व ”नैतिकता” को समझना अत्यावश्यक है। नैतिकता की बात तो हम लोग प्राय: करते ही रहते हैं पर नैतिकता को परिभाषित करना अत्यन्त कठिन है। नैतिकता की परिभाषा प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग तरीके से करेगा। यहाँ यह बात याद रखने की है कि नैतिकता अलग वस्तु है और देशाचार या ...
सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 102.7 करोड़ थी जिसमें हिंदीभाषियों की संख्या करीब 42 करोड़ (41.1%) थी। विभिन्न भाषा भाषियों की स्थिति निम्न तालिका के अनुसार थी – भारत में विभिन्न भाषाएं जानने वालों की संख्या (2001 की जनगणना के अनुसार) श्रेणी भाषा बोलने वाले (करोड़ में) प्रतिशत 1 हिंदी ...
स्व. श्री दयाल चंद्र सोनी लिखित जैन भारती, जुलाई, 2001 के अंक में प्रकाशित लेख धर्मपालन के जो पाँच महाव्रत- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह के रूप में गिनाए गए हें, वे गहरी दृष्टि से देखने पर अलग अलग पाँच महा व्रत नहीं हैं बल्कि एक ही मूल महाव्रत अर्थात् अहिंसा के पाँच आयाम ...